बनाता नहीं हूं चित्र स्वयं बनता है : हेमराज
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अमल मिश्र
हेमराज के चित्रों को देखने और उनका रस लेने के लिए कलाकार की यात्रा को समझना, जानना और उस तल पर जाना पड़ेगा जहां खड़े होकर कलाकार देश दुनिया से बेखबर कई घंटे अपने चित्रों से बतियाता, कुरेदता, उन्हें गाता और सहलाता रहता है। अन्यथा उन कामों में हल्के और गहरे रंगों के धब्बे ही दिखेंगे। मैने स्वयं जब उनके स्टूडियो में बहुत सारे चित्रों को देखते हुए हेमराज से बात की और उनकी कला यात्रा, उनके विचार और रचना प्रक्रिया के बारे में जानकर एक सहजता आई तो उनके चित्र मुझसे भी बतियाने लगे। व्यक्त कर पाने से परे, एक आनंद आने लगा, उनको छूने का दिल करने लगा। चित्र की रंगतों से दुनिया में बिखरे बहुत सारे रंगों से मिलान करने लगा और लगने लगा कि अब मैं किसी नई दुनिया को देख रहा हूं, जहां के पशु पक्षी, खरपतवार, जीव जंतु अपनी तरह के बने हुए हैं, जिन्हें हम इस दुनिया में नहीं देखते। पर ऐसा तो नहीं है कि जिन्हें हम न देखें या जिनसे हम रोज न मिलते हों, ऐसी दुनिया ही नहीं है, वाह कल्पनाओं और सपनों की दुनिया हो सकती है और कलाएं किसी दुनिया की मोहताज नहीं हैं। जो भी हम सोच सकते हैं, जो भी हम देख सकते हैं, स्वप्न देख सकते या कल्पना कर सकते हैं, वह सब कुछ कला हो सकती है। हेमराज बड़े और नामचीन संगीतकारों के गाए केवल ध्रुपद और खयाल सुनते ही नहीं हैं बल्कि अपने चित्रों में भी वह आलाप ले रहे होते हैं और स्वरों की गहरी दुनिया में गोते लगा रहे होते हैं। उनके हर चित्र में संवादी, अनुवादी और विवादी स्वर को महसूस कर सकते हैं। किसी रंग विशेष की तानों को सुन सकते हैं। एक दिनरात के चक्र में गाए जाने वाले विभिन्न रागों और बजाए जाने वाले तालों के सदृश्य ही हेमराज के विभिन्न रंगतों में बने चित्र हैं जिन्हें वह अपने स्टूडियो में बैठकर घंटों गाते और बजाते हैं। हेमराज कहते हैं चित्रण करना या उसमें रम जाना सचमुच किसी सुपर पावर से जुड़ना है। सचमुच, हेमराज पेंटिंग बनाते नहीं हैं वह स्वयं बनती जाती है। उन्हें स्वयं पता नहीं होता है कि कब चित्र शुरू हुआ और कब पूर्ण। कहते हैं कि एक बार पेंटिंग ने कह दिया कि वह जन्म ले चुकी है फिर उस पर कोई भी ब्रश स्ट्रोक लगाना, अच्छे और सुंदर कपड़े पर पैबंद लगाना है। इन चित्रों के जरिए हेमराज ने कभी वातावरण के करीब जाना चाहा है तो कभी पशु पक्षियों और कभी सुपर पावर के। वह कहते हैं कि एक बार सध जाए तो चित्र स्वयं बनने लगते हैं। बहुत बार हमारे समक्ष देखे या अनदेखे आकार होते हैं, जिनके सहारे किसी कथानक का इलस्ट्रेशन या आकृतियों का सरलीकरण अथवा उनका प्रतीकात्मक चित्र बनाया जा सकता है। पर धीरे धीरे हम इन सबसे परे जाने लगते है, आकार काम होने लगाते हैं, भाव प्रबल होने लगाते हैं और हर बार नया चित्र बनाना, नई सजीव सतह उभारना, नई रंगतें लाना, परतों के पीछे से झांकती परतों में एक रहस्य या आनंद पैदा करना ताकि दर्शक उनमें अपने को खोजे और उनको जिए, आसान नहीं है। यह किसी सुपरपावर से जुड़ जाने के बाद बेखुदी में ही संभव है।
शुरुआती काम देखा जाए तो प्रशिक्षण के दौरान कराए गए कलाअभ्यास ध्यान खींचते हैं लेकिन शीघ्र ही हेमराज अपने को ऐसी दुनिया से जोड़ लेते हैं जो दर्शक को अपने अंदर ले जाती है। अपना दर्शन कराती है। अपने से जोड़ती है। जहां सामान्यतया हम अपनी भागदौड़ की जिंदगी में नहीं जा पाते। चूंकि हेमराज व्यवसायिक रूप से प्रशिक्षित कलाकार हैं। इसलिए माध्यमों के प्रति उनकी सहजता उल्लेखनीय है। वह सारे माध्यमों में माध्यमगत विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए काम करते हैं। ऑयल कलर में काम करना उनकी विशेषता है पर कभी-कभी उससे हटकर वह रेखांकन और मूर्तियां भी बनाते हैं। रिलीफ में, कटआउट में काम करना चाहते हैं। उनके स्टूडियो में ऐसे कामों की भी भरमार है। हेमराज दिल्ली के रहने वाले, कला एवं शिल्प महाविद्यालय दिल्ली से प्रशिक्षित और दिल्ली की कला वीथिकाओं तथा विभिन्न कला संस्थानों द्वारा आयोजित महत्त्वपूर्ण आयोजनों में नियमित भागीदारी करते हैं और अपने नए नए कामों के साथ समकालीन कला जगत में उपस्थित रहते हैं। शीघ्र ही उनके नए चित्रों की प्रदर्शनी कला प्रेमियों की प्रतीक्षा को विराम देगी।
*अमल मिश्र*
मोतीलाल नेहरू कॉलेज
दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
मोबाइल नंबर 99568 99939
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