अपने नहीं, 'उसके' लिए चित्र बनाता हूँ : हेमराज
अमल मिश्र
भारतीय दर्शन में अपना कुछ नहीं, सब 'उसका' है। हम सब निमित्त मात्र हैं। पुतले की डोर उसके हाथ में है। यह बात हेमराज को उस समय ही समझ आ गयी थी जब वह बहुत छोटे थे और एक लम्बे समय बाद दुबारा कुछ स्टेशनरी खरीदने किसी दुकान पर गये और वह दुकानदार पिछले हिसाब में हुयी चूक के कारण हेमराज को उनके पैसे लम्बे समय बाद याद करके उस समय वापस करने लगा। आश्चर्यचकित हेमराज ने पूछा कि इतने समय बाद तक आपने यह बात याद कैसे रखी कि मुझे पैसे वापस करने हैं? आप नहीं भी वापस कर सकते थे? दुकानदार बोला कि यह मैं अपने लिए नहीं, 'उसके' लिए करता हूँ। वहीं से हेमराज समझ गये थे कि मुझे उसके लिए जीना और रचना है। इसी घटना की परिणति थी उनकी 'दाव' चित्र श्रृंखला, जिसने हेमराज को कम समय में ही स्थापित कलाकारों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया।
हेमराज कहते हैं कि प्रथम दृष्टया दर्शकों को लग सकता है कि मेरे बिंदु, आकार और स्ट्रोक एक जैसे हैं लेकिन जिस तरह हमारे धर्म और दर्शन में काम करने के स्थान, समय और प्रक्रिया के अंतर से उसके महत्त्व और परिणाम बदल जाते हैं, उसी तरह चित्रों में व्यवहृत ईश्वर को समर्पित मेरे एक-एक बिंदु, आकार और स्ट्रोक का अर्थ, भाव और सम्प्रेषण बदल जाता है। यही कारण था कि 'दाव' चित्र श्रृंखला का एक-एक चित्र दर्शकों के मन में उतरता चला गया और लोग उसे छूकर, अनुभूत कर आँखों से नहीं मन से देखने लगे। चित्रों में ध्वनित हो रहा संगीत सुनने और गुनगुनाने लगे।
वास्तव में हेमराज के चित्रों को चलते फिरते नहीं देखा जा सकता है। उसे देखने के लिए कलाकार की जीवन यात्रा, उसकी सहजता, धैर्य, संवेदनशीलता, समर्पण आदि को समझना, जानना और विचारों के उस तल पर जाना पड़ेगा जहां खड़े होकर कलाकार देश दुनिया से बेखबर कई घंटे अपने चित्रों से बतियाता, कुरेदता, उन्हें गाता और सहलाता रहता है। अन्यथा उन कामों में हल्के और गहरे रंगों के धब्बे और बाल कला के कुछ उदाहरण ही दिखेंगे। पर एक बार हेमराज द्वारा बरते गये रंगों और उसकी रंगतों, हर चित्र में प्रयोग किये गये बिंदुओं के आकार, प्रकार और स्थान, टेक्सचर और गहरी बाल सुलभ रेखाओं का मर्म समझ में आ जाये तो ऐसे आनन्द की प्रप्ति होगी जो व्यक्त नहीं की जा सकती। उनको छूने का दिल करने लगेगा, रंगों की ताजगी मन को लुभाएगी और चित्त में एक स्फूर्ति भर देगी। चित्र की रंगतों से निसर्ग और लोक में बिखरे बहुत सारे रंगों से मिलान कर अपने मन को रंगने का मन करेगा और लगेगा कि अब मैं हेमराज की रची उस दुनिया को देख रहा हूँ जो हमारी, आपकी, इसकी, उसकी, सबकी दुनिया है। जिस दुनिया के रीति-रिवाज, जीवन, लोक सब अपनी तरह के हैं और वे सब अपनी सत्ता के स्वयं मालिक हैं, इस दुनिया के सन्दर्भों के मोहताज नहीं। हेमराज के चित्रों की दुनिया कल्पनाओं और सपनों की दुनिया हो सकती है, एक नयी दुनिया, जो हमें बताती चलती है कि हम एक बहुविस्तृत अनंत दुनिया हैं यानि जहाँ तक कोई सोच सकता है, जहाँ तक कोई दृश्य या परिदृश्य में देख सकता है, जहाँ तक कोई स्वप्न देख सकता या कल्पना कर सकता है, वहाँ तक हमारा विस्तार है यानि हेमराज की कला का अनन्त विस्तार।
हेमराज संगीत प्रेमी हैं। रचना के ही समय नहीं, बल्कि जीवन की हर परिस्थिति में सरल, शांत और गम्भीर रहते हुए वह भीतर से रचनाशील रहते हैं। संगीत सुनना, प्रत्येक सांस्कृतिक विधाओं से समानान्तर रूप से जुड़े रहना उनकी रुचियों में है। वह बड़े और नामचीन संगीतकारों के गाए केवल ध्रुपद और खयाल सुनते ही नहीं हैं बल्कि अपने चित्रों में भी वह आलाप ले रहे होते हैं और स्वरों की गहरी दुनिया में गोते लगा रहे होते हैं। उनके हर चित्र में संवादी, अनुवादी और विवादी स्वरों को महसूस कर सकते हैं। किसी रंग विशेष की तानों को सुन सकते हैं। एक दिनरात के चक्र में गाए जाने वाले विभिन्न रागों और बजाए जाने वाले तालों के सदृश्य ही हेमराज के विभिन्न रंगतों में बने चित्र हैं जिन्हें वह अपने स्टूडियो में बैठकर घंटों गाते और बजाते हैं। हेमराज कहते हैं चित्रण करना या उसमें रम जाना सचमुच किसी सुपर पावर से जुड़ना है। हेमराज पेंटिंग बनाते नहीं हैं वह तो रागों की तरह स्वयं विस्तार लेती है। उन्हें स्वयं पता नहीं होता है कि कब चित्र शुरू हुआ और कब पूर्ण। कहते हैं कि एक बार पेंटिंग ने कह दिया कि वह जन्म ले चुकी है फिर उस पर कोई भी ब्रश स्ट्रोक लगाना, अच्छे और सुंदर कपड़े पर पैबंद लगाना है। वह कहते हैं कि एक बार सध जाए तो चित्र स्वयं बनने लगते हैं। बहुत बार हमारे समक्ष देखे या अनदेखे आकार होते हैं, जिनके सहारे किसी कथानक का इलस्ट्रेशन या आकृतियों का सरलीकरण अथवा उनका प्रतीकात्मक चित्र बनाया जा सकता है। पर धीरे धीरे कलाकार इन सबसे परे जाने लगते है, आकार गौण होने लगते हैं, भाव प्रबल होने लगते हैं और हर बार नया चित्र बनाना, नई सजीव सतह उभारना, नई रंगतें लाना, परतों के पीछे से झांकती परतों में एक रहस्य या आनंद पैदा करना ताकि दर्शक उनमें अपने को खोजे और उनको जिए, आसान नहीं है। यह 'उससे' जुड़ने के बाद ही संभव है।
दिल्ली के रहने वाले हेमराज रेखांकन और मूर्तियां भी बनाते हैं। रिलीफ में, कटआउट में काम करना चाहते हैं। उनके स्टूडियो में ऐसे कामों की भी भरमार है। वह नए कामों के साथ अपने कला प्रेमियों के समक्ष एक बार फिर उपस्थित होना चाहते हैं। इस बार 'इटरनल रेमिनिसेंस 2.0' श्रृंखला अपने सामाजिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, कलात्मक और नवप्रयोगों के विभिन्न सरोकारों और आयामों के साथ विविध रूप, रंग और रंगतों की अद्भुत दुनिया लेकर आ रही है जहाँ से प्राप्त अपने अनोखे अनुभव को कला प्रेमी जीवन भर समेटे रहना चाहेंगे।
अमल मिश्र
लेखक श्री वेंकटेश्वर कॉलेज,
दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र हैं
मोबाइल नंबर - 99568 99939
Comments
Post a Comment