हेमराज के चित्र और रेखांकन मुझे प्रिय हैं
हेमराज के चित्र और रेखांकन मुझे प्रिय हैं ।
हेमराज भी प्रिय हैं। पिछले तीस वर्षों से उनसे और उनके
चित्रों से परिचय है।उन्हें 1992 मे धूमिमल गैलरी द्वारा प्रदान किये
जाने वाला प्रथम रवि जैन मेमोरियल अवार्ड मिला था। तब से दिल्ली में आयोजित उनकी एकल प्रदर्शनियों और समूह प्रदर्शनियों मे उनके अत्यधिक संवेदनशील काम देखता ही आ रहा हूं। उनके
काम की निरंतरता सहज प्रवाही है। उनके अमूर्तन में जीवन --बोध के न जाने कितने भाव --अनुभव मूर्त हैं कि उन्हें देखते ही उनका मर्म हमारे भीतर भी झंकृत हो उठता है।उनके चित्रों में प्रकृति दृश्यों की एक आहट --सी रहती है।कभी लगता है हम किसी घास के मैदान मे पसरी धूप--छाया देख रहे हैं ।कभी किसी पर्वत पर तपते
किसी पत्थर के रंगों का बोध होता है।कभी कहीं एकत्रित हो गयी
जल सतह का, कभी किसी आकाशी छाया का।जाहिर है कि वे ऐसा कुछ सोचकर नहीं बना रहे होते ,ये तो सहज ही वे प्रकृति बिंब हैं जो उनके रंग --ब्रश बाहर ले आते हैं।अंततः तो वह प्रक्रिया ही
महत्वपूर्ण है जो उनकी चित्र--रचना का अनिवार्य हिस्सा है, जहां वे अनायास कोई रंग उठाते हैं , उस पर किसी दूसरे रंग की परतें भी चढती हैं या पास आ खड़ी होती हैं। और यह सिलसिला चलता रहता है , जब तक चित्र स्वयं उनसे यह नहीं कह उठता है "अब बस"।डाॅ श्रुति लखनपाल टंडन ने उनपर जो फिल्म बनायी है उसमे हेमराज ने अपनी रचना --प्रक्रिया बड़े सुन्दर तरीके से बतायी --दिखायी है।
वे सौन्दर्य के रचनाकार हैं। उनके यहाँ तिनके या टूटे धागे जैसी रेखा चित्र सौन्दर्य को कितना बढा देती है, यह
गौर करने वाली बात है।चित्रों में व्यक्त टेक्सचर भी बहुत कुछ कहता है।
यह भी ध्यान देने वाली बात है कि उनकी प्रदर्शनियां विभिन्न देशों
मे हुई हैं।सराही गयी हैं।वह हमारे उन समकालीन चित्रकारों में हैं जिनके काम की सुघराई --गहराई बढती ही गयी है।
बधाई हेमराज।
प्रयाग शुक्ल
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