Solo show of hemraj
कल शाम को बीकानेर हाउस में धूमिमल गैलरी द्वारा आयोजित हेमराज की प्रदर्शनी में दिल्ली का कला -- संसार उमड़ आया था।
कुछ कलाकार , कला प्रेमी अन्य शहरों से भी आये थे।हेमराज के पिता श्री चंदन लाल थे। उनके गुरु राजेश मेहरा थे , जो कम ही बाहर निकलते हैं।मैं प्रदर्शनी के उद्घाटन से पहले साढे चार बजे ही पहुंच गया था।और वहां पहुंच कर हेमराज के चित्र--संसार में खो गया था। वह बहुत परिचित लगकर भी हर बार नया लगता है , क्योंकि
हर बार उसमें कुछ जुड़ जाता है , ऐसा जो सचमुच कुछ नया हो।
वह उन कलाकारों में से नहीं हैं जो अपनी एक पहचान बना कर
रुक से जाते हैं । वह तो सतत रचनाशील उन चित्रकारों
में हैं जिनसे मानो हर बार वह चित्र भाषा ही यह कहती है कि मैं रूपाकारों ,रंगाकरों, रंगों और रेखाओं के साथ अब उसे कहना
चाहती हूं जो तुम्हारे प्रकृति--प्रेमी और जीवन-- प्रेमी कलाकार ने
अब तक नहीं कहा था।हां , बहुत गहरे प्रकृति प्रेमी, जीवन प्रेमी,
संगीत प्रेमी, सुमेल प्रेमी चित्रकार हैं हेमराज ,तभी तो उनकी कला में एक ही कैनवास पर इतने विविध प्रकार के रंग , अपनी त्वरा, अपने तेवर , अपनी खोज में आकर एक दूसरे से मिलते हैं : कुछ उसी तरह जैसे विविध रंगों वाली तितलियां जब विविध रंगों रूपों
वाले फूलों पर आकर बैठती हैं तो न जाने कितने रंग आकर खिल उठते हैं। वह तितली --फूल बनाते नहीं हैं , क्यों कि वह प्रकृति---
दृश्यों के कुछ ही रंगों-रूपों तक नहीं रुक जाना चाहते। वे स्मृतियों --अनुभवों--मनोभावों -- मनःस्थितियों के लिए जगह बनाते हैं --- अपने तैल रंगों ( आयल कलर) से। आज के दौर में वह तैल रंगों
को सार्थक रूप से बरतने वाले कलाकार भी हैं।देखिए उनके रंगों को , उनके उभार को भी , उनकी अनेकानेक रंगतों को ,
उनके उभार में, उनकी टेक्सचर--निर्मिति में भी। कभी --कभी
लगता है उनके रंगाकार सैर पर निकले हैं, शांति की खोज में , कभी तैरने को भी , रंग-- सरोवर में डुबकी लगाने को। कुछ छानने को ( गौर करिये किसी छलनी जैसे संवेदनशील रूपाकारों पर) भी।
ये अमूर्त चित्र हमारे भीतर बहुत कुछ को मूर्त करने की क्षमता रखते हैं : घरों के खिड़की --- दरवाजों को , उनसे बाहर देखने को।
किसी बागीचे में जाने को ।एक ऊर्जावान सौन्दर्य--बोध को जगाने
को ।देखिए इस बार उनकी सूत जैसी रेखाओं को जो कुछ मापती --परखती लगती हैं ।यह भी कहती हुई कि हमारी भूमिका के बिना
ये रंगाकार अपनी पूरी बात भला कैसे कह पाते। कैसे कह पाते भावों---मनोभावों के विरह ---मिलन की कथा का मर्म। मिलने--बिछुड़ने--मिलने की कथा भी तो हैं हेमराज के चित्र।
बधाई हेमराज।
यह एक सुखद संयोग ही है कि जब हेमराज को पहला रवि जैन
मेमोरियल अवार्ड मिला था आज से कोई तीस बरस पहले तो उसके निर्णायक मंडल मे बिमल दासगुप्ता , केशव मलिक, के.एस .कुलकर्णी जैसे अग्रजों के साथ मैं भी था और तबसे साक्षी
हूं उनकी यात्रा का।यह इसी तरह जारी रहे यही कामना करता हूं। बनी रहे स्मिति के साथ देवराज की संवेदनशील आंखों की उपस्थिति कला --संसार में।
Prayah shukla
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